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ज़मीन / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
सतह से जुड़ी तमाम जड़े
फैलना चाहती हैं ज़मीन पर
बिना खाद पानी के ही
बस उनसे कहो सहमें / सिकुड़ें नहीं
फैलती जाएँ अमर बेल की चहुँ दिशा में
ख़ुद-ब-ख़ुद बन जाएगी तब
उनकी एक ज़मीन
फिर देखना लोगों का एक हुजूम तारीफ़ में
क़सीदे पढ़ेगा, जो आज
उनके सहमेपन की आलोचना करते हैं ।