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ज़ालिम को कभी फूलते-फलते नहीं देखा / अर्श मलसियानी
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हम जौर भी सह लेंगे मगर डर है तो यह है
ज़ालिम को कभी फूलते-फलते नहीं देखा
अहबाब की यह शाने-हरीफ़ाना सलामत
दुश्मन को भी यूं ज़हर उगलते नहीं देखा
वोह राह सुझाते हैं, हमें हज़रते-रहबर
जिस राह पै उनको कभी चलते नहीं देखा