जिंदगी अजीब हो गयी  
बेबसी  नसीब  हो गयी 
जिंदगी खुशी को छोड़ कर
है   बड़ी   ग़रीब   हो  गयी 
पुरवक़ार   प्यार   दोस्ती
वक्त  की  सलीब  हो गयी 
रौशनी तो मिल नहीं सकी
तीरगी   हबीब   हो   गयी 
रौशनी  जो  दूर  थी  खड़ी
किस क़दर क़रीब हो गयी 
थी नहीं  पसंद  जो कभी 
वो जुबां  अदीब  हो गयी 
आंसुओं  से  सींचते  रहे 
पीर  पर  रक़ीब  हो गयी