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ज़िंदगी के सहरा में / राजेन्द्र टोकी
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ज़िंदगी के सहरा में
रचनाकार | राजेन्द्र टोकी |
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प्रकाशक | नीलाभ प्रकाशन , 5-ख़ुसरो बाग़ रोड, इलाहाबाद |
वर्ष | 1995 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | |
पृष्ठ | 120 |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- बेवजह-सी ज़िंदगी को बावजह कहता रहा / राजेन्द्र टोकी
- बस इसी बात से हर वक़्त उलझता क्या है / राजेन्द्र टोकी
- यूँ अपनी तारीफ़ सुनाना अच्छा लगता है / राजेन्द्र टोकी
- ख़ुद को धोखे में रखोगे कब तक / राजेन्द्र टोकी
- अम्न की बातें हैं लब पे हाथ में तलवार है / राजेन्द्र टोकी
- यादे-माज़ी का ढल गया सूरज/ राजेन्द्र टोकी
- साथ ले अपनी हदें चलते रहे सोचा नहीं / राजेन्द्र टोकी
- कुछ भी तुमसे छुपा नहीं होता / राजेन्द्र टोकी
- रात की नागिन डसने आए / राजेन्द्र टोकी
- वो सामने है मगर हमने कुछ कहा ही नहीं / राजेन्द्र टोकी
- ग़मे-हयात को लिल्लाह शादमाँ करदे / राजेन्द्र टोकी
- सबूत कोई तो उसके वुजूद का निकले / राजेन्द्र टोकी
- जबसे वो दिल के पास बैठा है / राजेन्द्र टोकी
- इस नए दौर में दिल यार पुराना चाहे / राजेन्द्र टोकी
- मेरा सपना सच्चा होगा / राजेन्द्र टोकी
- दिखा के रोज़ ही टी०वी० में इक हसीं चेहरा / राजेन्द्र टोकी
- फूल लाफ़ानी खिलाना चाहिए / राजेन्द्र टोकी