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ज़िंदगी में इक अजब ठहराव सा है / पवन कुमार

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ज़िंदगी में इक अजब ठहराव सा है
और सोचों में वही भटकाव सा है

कैसी-कैसी आरजूओं के सिले में
जो दिया है तूने इक बहलाव सा है

दूर है साहिल मगर ये भी बहुत है
इस भँवर में साथ उनका नाव सा है

ज़र्रे ज़र्रे से अयाँ है तेरा जल्वा
यह जहाँ सारा तेरा फैलाव सा है

मैं ये बोला इज्ज़त-ओ-शोहरत है मक’सद
वो ये बोला ख़्वाब में बिखराव सा है

अयां = जाहिर, साफ दिखाई पड़ने वाला