भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी धूप की बारिशों का सफ़र / अज़ीज़ आज़ाद
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी धूप की बारिशों का सफ़र
यार क्या ख़ूब है ख़्वाहिशों का सफ़र
ज़ख़्म खाते रहे मुस्कराते रहे
यूँ ही चलता रहा काविशों का सफ़र
ज़ुल्म से ज़ब्त की और ताक़त बढ़ी
हौसला दे गया गर्दिशों का सफ़र
कितनी क़ौमें उलझ कर फ़ना हो गईं
खा गया है उन्हें रंजिशों का सफ़र
लड़खड़ाते हुए घर की जानिब चले
लो शुरू हो गया मैकशों का सफ़र
यार ‘आज़ाद’ थोड़ा सँभल कर चलो
मार डालेगा ये साज़िशों का सफ़र