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जाने किसके लिए / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

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आज मुद्दत बाद वो सज सँवरकर घर आया, था खुश
जाने किसके लिए

उसने मुझे नहीं दिया, उसके हाथ में था गुलाब
जाने किसके लिए

वो मुझसे, मैं उससे बोली नहीं लेकिन वह कुछ बोला
जाने किसके लिए

बेचैन था कुछ बोला नहीं जैसे आया वैसे ही निकल गया
जाने किसके लिए

हँसने की कोई बात न थी, मगर वह देर तक हँसता रहा
जाने किसके लिए

हर दिन की रात होती है, हर सुबह की शाम होती है
जाने किसके लिए

एक खत अनपढ़ा रह गया, लिखा गया था, जाने कब
जाने किसके लिए
सब चुप हैं, बस एक चिडिय़ा है जो डाल पर चहक रही है
जाने किसके लिए

उसने अचानक गुनगुनाया गीत लम्बी चुप्पी के बाद
जाने किसके लिए

अक्सर हँसते-हँसते होकर उदास रोने लग जाती हूँ
जाने किसके लिए

उसकी आँखों में सपनों की जगह रहते हैं आँसू
जाने किसके लिए

वो मेरे पास आता ज़रूर है पर आकर जाता कहीं और है
जाने किसके लिए

मैं तमाम उम्र भागती रही जिसके लिए वो भाग रहा है
जाने किसके लिए

घर में टिकता नहीं पल भर फिर उसने यह घर बनाया
जाने किसके लिए

सब कुछ रुका हुआ है जीवन में पर ये साँसें चल रही हैं
जाने किसके लिए

बिन मिले बिन बोले बिन कुछ सुने चला गया, आया था
जाने किसके लिए

उसके लबों पर रहता सदा गीत, रहती हँसी, रहते मीठे बोल
जाने किसके लिए