जाम हम बढ़के उठा लेते, उठाने की तरह
क्यों न पीते जो पिलाते वो पिलाने की तरह
तुम ठहरने को जो कहते, तो ठहर जाते हम
हम तो जाने को उठे ही थे, न जाने की तरह
कोई आँचल भी तो हो उनको सुखाने के लिए
अश्क तब कोई बहाए भी, बहाने की तरह
टीस कहती है वहीं उठके तड़पती-सी ग़ज़ल
दिल को जब कोई दुखाता है, दुखाने की तरह
गर्मजोशी की तपिश भी तो कुछ उसमें होती
हाथ ‘महरिष’, जो मिलाते वो मिलाने की तरह