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जार्ज़िया के गिरी-टीलों को रात्रि-तिमिर ने घेरा है / अलेक्सान्दर पूश्किन
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जार्जिया के गिरी-टीलों को रात्रि-तिमिर ने घेरा है
औ’ अरागवा नदी सामने कल-छल शोर मचाती है,
बेशक दुख में डूबा-डूबा, पर हल्का मन मेरा है
क्योंकि तुम्हारी याद उदासी लाती, मन तड़पाती है।
एक तुम्हारे, सिर्फ़ तुम्हारे कारण व्यथा उदासी है
और न कोई पीड़ा मुझको, चिन्ता नहीं सताती है,
फिर से मेरी तप्त आत्मा पुनः प्यार की प्यासी है
क्योंकि प्यार के बिना रह सके, हाय, न यह कर पाती है।
रचनाकाल : 1829