जिंदगी: कई रंग / मुकेश निर्विकार
बे-तरतीब,
बिखरी-बिखरी,
ताम-झाम जैसी जिंदगी!
फीकी-फीकी
रीती-रीती
शाम-जैसी जिंदगी!
खट्टे-खट्टे
मीठे-मीठे
मिलेजुले,
कटे-छिले,
बछपन की बगिया के
आम जैसी जिंदगी!
खुशबू-खुशबू
तीखी-तीखी
बूंद इधर-बूंद उधर,
बिखरे-बिखरे,
छ्लके-छलके,
जाम-जैसे जिंदगी!
नजरें-नजरें,
लुका-छुपी,
दबे पाँव
झुकी-झुकी,
बाजार-ए-आम में
बदनाम-जैसी जिंदगी!
पड़ी-पड़ी,
रुकी-रुकी,
व्यर्थ-इधर,
व्यर्थ,उधर,
बिना किसी ध्येय के,
निष्काम-जैसी जिंदगी!
बीहड़ पथ,
सुमसाम,
सूरज की तेज घाम,
परित्यक्त पथ के किसी
झाड़-झाम जैसी जिंदगी!
व्यस्त इधर, व्यस्त उधर,
भाग इधर, दौड़ उधर
दिल की किसी हसरत के
सर-ए-शाम
कत्लेआम जैसी जिंदगी!
ठहरे-ठहरे,
रुके-रुके,
दुनियाँ से दूर कटे,
गुमनामे मेँ बसर करते,
पिछड़े हुए दूर किसी
गाम जैसी जिंदगी!
कभी इधर-उधर
कभी इज्जत, कभी बे-इज्जत,
कभी दुलार, कभी फटकार,
दरबारे-आम में
हुक्म अदबी करते हुए
भांड जैसी जिंदगी!
लक्ष्य नहीं, तथ्य नहीं,
रस नहीं, वश नहीं,
जंगल में खुले आम
सांड जैसी जिंदगी