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जिसके जो भी जी मे आये कहने दो / रंजना वर्मा

जिसके जी में जो भी आये कहने दो।
बहुत सहा तुमने अब जग को सहने दो॥

बसी तुम्हारी छवि नित आँखों में रहती
बन कर आँसू धार न उस को बहने दो॥

छलक नयन से अश्रु सभी कुछ कह देंगे
अंतर पीर छुपी अंतर में रहने दो॥

मत भँवरों के इतने अत्याचार सहो
सुमनों की सुगन्ध निशि वासर बहने दो॥

छलकेगी चाँदनी चाँद जब पिघलेगा
तारों के अंदाज चमकते रहने दो॥

मौसम बदल-बदल कर आहत करते हैं
मन की उच्च इमारत को मत ढहने दो॥

होकर ज्वाला स्नात निकल आया सूरज
उसे ताप में अब अपने ही दहने दो॥