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जिस की गिरह में माल नहीं है / 'रशीद' रामपुरी
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जिस की गिरह में माल नहीं है
ग़म पुरसान-ए-हाल नहीं है
सब्ज़ा हो या दिल तेरे क़दम से
कौन है जो पामाल नहीं है
उन के करम का रस्ता देखें
इतना इस्तिक़लाल नहीं है
आज ग़रीबों का दुनिया में
कोई शरीक-ए-हाल नहीं है
उस का भी कोई रंग-ए-सुख़न है
जिस की कोई टकसाल नहीं है
ख़ुश हैं ‘रशीद’ इतना दुनिया में
क्या ख़ौफ़-ए-आमाल नहीं है