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जीत गया आकाश / रमेश रंजक
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डूब गया चेहरे का सूरज
जीत गया आकाश
कब-तक ढोता रहूँ
सुनहरी समझौते की लाश
बात हो गई रात अँधेरी
देह कसैली गन्ध
कतराने लग गए हमारे
आपस के सम्बन्ध
उलझन को सुलझाने का भी
नहीं मिला अवकाश
बेशक़ीमती धूल चरण की
ये आशीर्वचन
अभी न कर पाएँगे मेरे
ख़ाली हाथ नमन
कुछ दिन मुझे उठाकर रख दो
कठपुतली के पास
सुबह उड़ाती हँसी
किसी धनवान पड़ोसी-सी
मोटी आमदनी लगती
सिंहासन बत्तीसी
तोड़ रही है भूख हड्डियाँ
मोड़ रही है प्यास