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जीत से हर हाल में तकरार है / आनन्द बल्लभ 'अमिय'

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जिन्दगी के खेल में बस हार ही अपनी सहेली
जीत से हर हाल में तकरार है।

दो घड़ी कविता रचाने, नींद के बैरी बने हैं।
नैन आपस में उलझकर, नून के पानी सने हैं।
बस दिखावे का महज संसार है
जीत से हर हाल में तकरार है।

हा! मृत पड़ा साहस बिचारा, किन्तु बिन पानी पिये।
स्वर्ग कब दिखता मरे बिन, इस तरह ध्यानी जिये।
कौन मानेगा फँसी पतवार है?
जीत से हर हाल में तकरार है।

ढूँढते खुशियाँ, गली, चौराह, सारा गाँव छाना।
दिख रहे थे मस्त आसामी, सभी का व्यस्त बाना।
हम निपट कोल्हू यहीं इतवार हैं
जीत से हर हाल में तकरार है।