जीना / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
मेरा तुम पर पूरा हक है
मैं तुम्हें रुलाऊँगा
मैं ही फिर हँसाऊँगा
तुम्हें घर से निकालूँगा
फिर पीछे-पीछे मैं ही दौड़ा आऊँगा
कुछ लोगों को साथ लाऊँगा
देखो कितना ख्याल रखता हूँ
सबको दिखलाऊँगा
जब मेरा मन करेगा तुम्हें जलाऊँगा
तुम जलने लगोगी तो मैं ही आग बुझाऊँगा
ऐसे में लोगों से क्या कहना मैं ही बताऊँगा
वरना मैं कहूँगा
आत्महत्या के लिए थी उतारू
तुम्हें हर रास्ता मैं ही दिखाऊँगा
पर मंजि़ल नहीं बताऊँगा
तुम जब भटक रही होगी
मैं खुद ही तुम्हारी मंजि़ल बन जाऊँगा
इसलिए तुम पंख मत फडफ़ड़ाओ
उड़ नहीं पाओगी, उड़ भी गयी तो, कहाँ तक जाओगी
तुम्हारा आसमान और पंख मैं हूँ
तुम मेरी नज़रों में हो
पकड़ लाऊँगा जहाँ भी जाओगी
मेरी पकड़ से
तुम कैसे बच पाओगी
मैं जानता हूँ तुम ठीक मेरे अनुसार होती जा रही हो
जब जैसे चाहूँगा तुम चली आओगी
ऐसा सब करोगी तब ही तो जी पाओगी
वरना...