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जीवन का मोल / गोपीकृष्ण 'गोपेश'
Kavita Kosh से
जीवन का मोल किया कर, मन !
जीवन क्या है ? बस सुधियाँ हैं,
सुधियाँ क्या ? केवल अश्रुधार,
आहों से झंकृत श्वास क्षीण,
बज उठता मानस का सितार,
यह है सितार क्या ? मिट्टी है,
मिट्टी का मोल किया कर, मन !
जीवन का मोल किया कर, मन !!
तू शून्य-देश का वासी है,
यह दृग-छाया बतलाती है,
निद्रा-सी इस विदेश में भी
सपनों की दुनिया आती है,
चिर-शून्य दिशा में बादल बन
तारों का मोल किया कर, मन !
जीवन का मोल किया कर, मन !!
तूने हंसने का लिया नाम,
क्रन्दन तुझको कर उठे याद,
रोकर दीवारें सूख गईं,
चित्रित है उनपर आर्त्तनाद !
क्या गहन दरारें देख रहा,
बन्धन का मोल किया कर, मन !
जीवन का मोल किया कर, मन !!