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जुस्तजू के लिए ख़ुशी भी नहीं / सिया सचदेव

जुस्तजू के लिए ख़ुशी भी नहीं,
ज़िन्दगी जैसी ज़िन्दगी भी नहीं.

ख़्वाहिशें हैं के बढ़ती जाती हैं
और कहने को कुछ कमी भी नहीं

धुधला धुंधला सा है हर इक मंज़र
इन निग़ाहों में रौशनी भी नहीं

मैं तेरा नाम लेके मर जाऊं,
इतनी कमबख्त बेबसी भी नहीं,

धूप आई 'सिया' न मुद्दत से
और किस्मत में चांदनी भी नहीं.