भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुहू बीच / शरद कोकास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक

नंगे पाँव रेत पर चलने का सुख
सिर्फ़ उन्हें महसूस होता है
जो कभी नंगे पाँव नहीं चलते।

बाक़ी के लिये
सुख क्या और दुख क्या।

दो

मुट्ठी में रेत की तरह
वक़्त के फिसलने का बिम्ब
यूँ तो बहुत पुराना है
और उससे भी पुराना है
एक ज़िंदगी में
प्रेम के व्यक्त न हो पाने का बिम्ब
इसलिए इससे पहले कि यह जिं़दगी
दुख की किसी लहर के आने पर
पाँवों के नीचे की रेत की तरह फिसल जाए
कह दो जो कुछ कहना है
इसी एक पल में।

-2009