भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जे नद्दी छेलै खलखल / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे नद्दी छेलै खलखल
वही ओज लागै दलदल।

ई जंगल मेॅ नर के वासोॅ
ई जंगल सेॅ अभी निकल।

कोय खबर अनहोनी के छै
एतना कहिने मन चंचल।

के एकरोॅ मानी बतलैतै
इक पोखर मेॅ पाँच कमल।

दरद वहीं तेॅ जानै, जेकरोॅ
दिल में गथलोॅ छै बिज्जल।

गजल कहै छै केकरा यै लेॅ
सारस्वतोॅ के पढ़ोॅ गजल।