भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जोगी जंगल बीच बसें / प्रेमशंकर रघुवंशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जोगी जंगल बीच बसें !
अपना पादा आप हँसे !!

लगा धूनियाँ ये मुसटण्डे
सुलगाते कण्डों पर कण्डे
तंत्र-मंत्र में दिखा करिश्में
बाँध रहे भक्तों को गण्डे
स्वर्ग नर्क के डर बतलाकर
भरमाते सबको रसमण्डे
आँतें तक निकाल लेते हैं

जो भी इनके जाल फँसें !
जोगी जंगल बीच बसें !!

इनके चिमटे बड़े नुकीले
इनकी खड़तालें आकर्षक
इनकी तपोभूमि में रमतीं
इंद्रलोक की रंभा लकदक
जो भी इनकी पोल खोलता
उनको इनके नाग डँसें
जिससे पीली पड़ें नसें

जोगी जंगल बीच बसें !
अपना पादा आप हँसें !!

रँगे सियारों के जैसे ये
धर्म-ध्वजा फहराते हैं
करते कर्ण वही श्रद्धालु
जो उनसे ये करवाते हैं
लीक छोड़ चलते जो राही
उनको इनके दूत कसें

जोगी जंगल बीच बसें !
अपना पादा आप हँसे !!