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जोहे जाहि चाँदनी की लागति भली न छवि / दास
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जोहे जाहि चाँदनी की लागति भली न छवि ,
चँपक गुलाब सोन जुही जोति वारी है ।
जामते रसाल लाल करना कदम्बते वै ,
बढ़ी है नवेली सुनु केतकी सुधारी है ।
कहै दास देखौ यह तपनि विषादित्त की ,
कैसी बिधि जाति दोपहरिया नेवारी है ।
प्रफुलित कीजिये बरसि घनस्याम प्यारे ,
जाति कुम्हिलानि वृषभानुजू की बारी है ।
दास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।