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जो दर्द दिया तू ने भुला भी नहीं सकती / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जो दर्द दिया तू ने भुला भी नहीं सकती
है रात मगर शम्मा जला भी नहीं सकती
बोझिल हुई है साँस मचलतीं हैं धड़कनें
है बोझ जो सीने पे हटा भी नहीं सकती
यादें हैं तसव्वुर है निगाहों में भी तू ही
किस ओर नहीं तू है बता भी नहीं सकती
थी सुर्ख़ हथेली पे महकती रची हिना
उसमें जो लिखा नाम दिखा भी नहीं सकती
ये इश्क़ की गलियाँ कभी चौड़ी नहीं होतीं
मुश्किल है गुज़र साथ में जा भी नहीं सकती
ऐ काश तू मिल जाय तो पूछें भी हाले दिल
तू दूर है इतनी कि बुला भी नहीं सकती
इस हिज्र ने तोहफ़ा जो हमें दर्द का दिया
उस से जो उठी आह सुना भी नहीं सकती