भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो पहलां था ना ईब कहै सैं / दयाचंद मायना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो पहलां था ना ईब कहै सैं, ओ लाला हमें गरीब कहै सैं
दुख नै ओटणियां...टेक

किस दिन तेल दीप मैं घलै, जब म्हारा शरीर चमन ज्यूं खिलै
कद सुख मिलै,
इन्तजार करै सै, बेईमान आदमी बहोत फिरै सै
म्हारे गल नै घोटणियां...

तुम साहुकार सेठ हाम कंगले, थारै घर हवा खाण नै जंगले
कोठी, बंगले, महल आपके, शौभा दे ना गैल आपके
पत्थरां पै लेटणियां...

कर्म का नफा कर्म का टोटा, रहण दे बंधा भरम भरोटा
एक छोटा एक बहुत बड़ा नल, बणती कोन्या बात ऊंट गल
बकरी जोटणियां...

अक्षर तुम जाणो सो जितने, हाम थारे सवाल बतावै कितने
ना इतने, लिखे पढ़े दयाचन्द, सब म्हारे तै बड़े ‘दयाचन्द’