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जो राख होने से बचे हैं... / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
बड़ा और बहुत बड़ा तो
कुछ भी घटित नहीं होता
हर एक की ज़िन्दगी में
मगर छोटी-छोटी बातों
और अपने हिंसक समय के टुकड़ों से बनी
किसी की ज़िन्दगी
इतनी मामूली भी नहीं होती इस पृथ्वी पर
कि उसे दरकिनार कर सके कोई आसानी से
मामूली दुकान की मैली बेंच पर
चाय पीते लोगों के साथ
गुज़ारे गये समय का स्वाद
इसीलिये बहुत देर तक
रहता है जु़बान पर
ध्वस्त हुए लोगों की बची हुई आग
मामूली नहीं होती
यह देर रात तक
जलाती और जगाती है उन्हें
जो पूरी तरह राख होने से
बचे हैं अभी तक।