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जो रोते हैं ऐसी ही बातों में आप / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
जो रोते हैं ऐसी ही बातों में आप
कहाँ मुँह छिपायेंगे रातों में आप
हमें अपने ही हाल पर छोड़ दें
चले जायँ अब अपनी घातों में आप
वे बातें जिन्हें हम छिपाया किये
बता ही गये बातों-बातों में आप
उमीदें तो दिल की बुझीं इस तरह
दिये बुझते हैं जैसे रातों में आप
चुभाये हैं किसने ये काँटे, गुलाब!
खड़े हैं शहीदों की पाँतों में आप