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जो वो नज़र-बा-सरे लुत्फ़ आम हो जाये / हसरत मोहानी
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जो वो नज़र-बा-सरे लुत्फ़ आम हो जाये
अजब नहीं कि हमारा भी काम हो जाये
रहीं-ए-यास रहे, पहले आरजू कब तक
कभी तो आपका दरबार आम हो जाये
सुना है बार सरे बख्शीश है आज पीर मुगां
हमें भी काश अता कोई जाम हो जाए
तेरे करम पे है मोकुफ कामरानी-ए-शौक
ये ना तमामे इलाही तमाम हो जाये
सितम के बाद करम है जफा के बाद अता
हमें है बस जो यही इल्तजाम हो जाये
अता हो सोज वो या रब जुनूने हसरत को
कि जिससे पुख्ता यह सौदा-ए-खाम हो जाये