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झिलमिल-झिलमिल जादू-टोना पारा-पारा आँख में है / अशोक अंजुम
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झिलमिल-झिलमिल जादू-टोना पारा-पारा आँख में है
बाहर कैसे धूप खिलेगी जो अँधियारा आँख में है
यहाँ-वहाँ हर ओर जहाँ में दिलकश ख़ूब नजारे हैं
कहाँ जगह है किसी और को कोई प्यारा आँख में है
एक समन्दर मन के अन्दर उनके भी और मेरे भी
मंजिल नहीं असंभव यारो अगर किनारा आँख में है
परवत-परवत, नदिया-नदिया, उड़ते पंछी, खिलते फूल
बाहर कहाँ ढूँढते हो तुम हर इक नजारा आँख में है
चैन कहाँ है, भटक रहे हैं कभी इधर तो कभी उधर
पाँव नहीं थमते हैं ‘अंजुम’ इक बंजारा आँख में है