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झुलावत निज कर नंद-किसोर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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झुलावत निज कर नंद-किसोर।
रतन हिंडोरें बैठी राधा झूल रही आनंद-बिभोर॥
झूलि रही पिय के सुख कारन, भूलि रही सगरौ संसार।
मुख-पंकज-मकरंद-पानरत नयन-मधुप, आनंद अपार॥
निरखि किसोरी कौ सुस्मित आनंद-निमग्र बदन-सरदिंदु।
उमग्यौ हरि-‌उर परम मधुर अति प्रेमानंद-सुधा-रस-सिंधु॥
सखी-सहचरी भूलीं तन-मन, निरखि मधुर लीला-रस-रंग।
मर्माहत मूर्छित ह्वै रति-सँग अवनी ऊपर पर्‌यौ अनंग॥