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झूलत नागरि नागर लाल / गदाधर भट्ट
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झूलत नागरि नागर लाल।
मंद मंद सब सखी झुलावति गावति गीत रसाल॥
फरहराति पट पीत नीलके अंचल चंचल चाल।
मनहुँ परसपर उमँगि ध्यान छबि, प्रगट भई तिहि काल॥
सिलसिलात अति प्रिया सीस तें, लटकति बेनी नाल।
जनु पिय मुकुट बरहि भ्रम बसतहँ, ब्याली बिकल बिहाल॥
मल्ली माल प्रियाकी उरझी, पिय तुलसी दल माल।
जनु सुरसरि रबितनया मिलिकै, सोभित स्त्रेनि मराल॥
स्यामल गौर परसपर प्रति छबि, सोभा बिसद बिसाल।
निरखि गदाधर रसिक कुँवरि मन, पर्यो सुरस जंजाल॥