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टूट गई दोस्ती / रमेश रंजक

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टूट गई दोस्ती
आई जब दर्पण में
अफ़सरी नज़र
कतरा कर गुज़रने लगा मेरा डर

ग्रंथित मन !
बित्ते भर नहीं आयतन
जहाँ खोल दूँ तुझे
धरती है गणित की क़िताब
बता गई मेरी भटकन मुझे

फ़सलों के साथ चढ़ गया
गाँवों में शहर का ज़हर

आया अलगाव
जब अलावों के सिर उठे
दूर मील-पत्थर से
बूढ़े शातिर उठे

पैदल से बड़ा हुआ जानवर
कतरा कर गुज़रने लगा मेरा डर