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ठण्ड / शरद कोकास
Kavita Kosh से
मैं नहीं गया कभी कश्मीर
न मसूरी न नैनीताल
दिल्ली क्या
भोपाल तक नहीं गया मैं
नहीं देखे कभी
तापमान के चार्ट
अख़बारों में नहीं पढ़ा
टीवी पर नहीं देखा
किसी साल कितने लोग ठंड से मरे
शहर से आए बाबू से नहीं पूछा मैंने
तुम्हारे उधर ठंड कैसी है
नहीं हासिल हुए मुझे
शाल, स्वेटर, दस्ताने और मफलर
मुझे नहीं पता
ठंड से बचने के लिए
लोग क्या क्या करते हैं
ज्यों-ज्यों बढ़ी ठंड
मैंने इकट्ठा की लकड़ियाँ
पैदा की आग।
-1995