ठूँठ के संघर्ष की गाथा अनूठी है / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
ठूँठ के संघर्ष की गाथा अनूठी है।
हौंसलों में एक आशा रश्मि फूटी है।
खो चुके साहस, सपन जो पथ्य भूले हैं।
शौर्य की कविता पढें, जो सत्य भूले हैं।
मत बनो पाषाण रे, हिल डुल जरा साथी
जो उदासी हैं, उन्हीं से नियति रूठी है।
ठूँठ के संघर्ष की गाथा अनूठी है।
कंटकों में जीतने की चाह रख लो तुम।
यातना के आह में भी वाह रख लो तुम।
कर्म रस से जीवनी की बावड़ी भर लो
आलसी की कीर्ति संपद मीत झूठी है।
ठूँठ के संघर्ष की गाथा अनूठी है।
हैं सतत संघर्षरत जो, सुख नहीं जीते।
शांति जिनको भा गयी, वे विष नहीं पीते।
बीहड़ों में स्वत्व सत्ताएँ बची जिनकी
अंत की संभावनाएँ साथ छूटी हैं।
ठूँठ के संघर्ष की गाथा अनूठी है।
ठूँठ के संघर्ष की गाथा अनूठी है।
हौंसलों में एक आशा रश्मि फूटी है।