Last modified on 13 अगस्त 2013, at 21:46

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है / हुमेरा 'राहत'

तअल्लुक़ की नई इक रस्म अब ईजाद करना है
न उस को भूलना है और न उस को याद करना है

ज़बानें कट गईं तो क्या सलामत उँगलियाँ तो हैं
दर ओ दीवार पे लिख दो तुम्हें फरियाद करना है

सितारा ख़ुश-गुमानी का सजाया है हथेली पर
किसी सूरत हमें तो अपने दिल को शाद करना है

बना कर एक घर दिल की ज़मीं पर उस की यादों का
कभी आबाद करना है कभी बर्बाद करना है

तक़ाज़ा वक़्त का ये है न पीछे मुड़ के देखें हम
सो हम को वक़्त के इस फै़सले पर साद करना है