भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तस्वीर / लक्ष्मीकान्त मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथी के दांत
देखे जा सकते थे चिड़ियाघरों के
अंधेरे में डूबी कंदराओं में
बहाना कुछ भी हो सकता था
कैमरे ताने अपलक खड़े थे लोग
डरी-सहमी और खिली आंखें
अवाक्!
बड़े सुलझाने में लगे थे
अतीत के खाये-पफंसे धगे
हम छान आये थे
स्कूल के जमाने की दुबकी स्मृतियां
औचक खड़े थे बच्चे
अगले युग की पुस्तकों में
उन्हें देखनी थी इन
उजले दांतों की तस्वीर।