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ताले नासूर के / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
चला गया दिन
हमको झूर के<ref>झकझोर कर (देशज शब्द)</ref>
जाते-जाते देखा घूर के
चला गया दिन
बटी हुई रस्सी के बल खुले
मैले हो गए हम धुले-धुले
मकड़ी के जाले-सा पूर के
चला गया दिन
भीतर की कसक हुई बाहरी
की ऐसी तीखी जादूगरी
खोल गया ताले नासूर के
चला गया दिन
शब्दार्थ
<references/>