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तुझमें प्रतिभा भरकर विधि ने / रामगोपाल 'रुद्र'

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तुझमें प्रतिभा भरकर विधि ने वरदान दिया, या शाप?

नाहक इसकी चिन्‍ता मत कर
यह खेती है किस पर्वत पर!
उपजेगा तृण, अथवा केसर!
तू तो मजूर, अपने भरसक, बस, खटता चल चुपचाप!

हँसकर हालाहल पीता चल,
कमखाबी कथरी सीता चल;
संघर्षों में ही जीता चल;
धो स्वेद-सलिल से ही अपने कोरे चोले की छाप!

तेरे तन की है लाज, उसे;
लेना है तुझसे काज, उसे;
सब कुछ का है अन्‍दाज उसे;
तेरे लायक जो कुछ होगा, देगा वह अपने आप।