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तुमको भी, मेरी याद / रामगोपाल 'रुद्र'

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तुमको भी, मेरी याद! कभी आती है मेरी याद?
कभी तो आती होगी याद!

तप के तन पर जलधर-अम्बर करता करुणा की छाँह;
परिताप-द्रवित दिव आप नमित धरता धरती की बाँह;
सुमनों का चाप चढ़ा, चढ़ता भव पर जब नभ-उन्माद
तुमको भी क्या, घन से छूटी, आती है कोई याद?

दो नील नयन राकायन बन जगते बाले शशि-दीप;
मोती चुगता आकाश, चकोरी-धरती छल के सीप;
चाँदी के कलसे चढ़ते हैं जब ज्वारों के प्रासाद
तुमको भी क्या, नभ से टूटी, आती है कोई याद?

धनखेतों की सोनारानी धरती कुटियों में पाँव,
ओढ़े धूमल चादर दिखते धानी घानी के गाँव;
कुटते जब श्रम के दान, कुटिल धन का बनने को स्वाद
तुमको भी क्या दिल में कूटी, आती है कोई याद?

भूधर भू से सटकर सोते जब ओढ़ शिशिर-नीहार,
सेमल से लाल दुलाई लतिकाएँ लेतीं साभार;
कंटकदल जबकि दलकते हैं, बनकर छद के अपवाद
तुमको भी क्या, विधि से लूटी, आती है कोई याद?

छीटों की चोली-चुनरी में छुटती छिति की मुस्कान,
चोटी पर चढ़ते फूल, फूल पर फल, फल पर पिक-बान;
कलियों के मुँह पर खिल जाते जब अलियों के अवसाद
तुमको भी क्या, बिंधकर फूटी, आती है कोई याद?

आमों को देख तरसते हैं बिन दामों के अनुराग;
तप के मारे, मारे चलते पीले पत्‍तों के भाग;
प्यासी धूली से उठती है जब 'पी-पी' की फरियाद
तुमको भी क्या, जीवनबूटी! आती है कोई याद?