भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी बात चले, गुलस्तिान ख़ुशबू दे / अनु जसरोटिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी बात चले, गुलस्तिान ख़ुशबू दे
तुम्हारे ज़िक्र से मेरी ज़ुबान ख़ुशबू दे

कभी कभी बहँा जाते हैं सजदा रेज़ी को
जहाँ बुज़ुर्ग रहें वो मकान ख़ुशबू दे

ये ख़ास बात ‘बनारस’ की सर-ज़मीं की है
जहान भर में ‘बनारस का पान’ ख़ुशबू दे

चली है बात कहीं जब भी अम्ने-आलम की
बहाँ बहाँ मेरा हिन्दोस्तान ख़ुशबू दे

बर्हाँ झुकाते हैं हम अपना सर अक़ीदत से
जहाँ कहीं हमें विद्या का दान ख़ुशबू दे

ब-वक़्ते शाम भी गूंजे भजन हर इक जानिब
सह्र के वक़्त भी मीरा की तान ख़ुशबू दे

नगर में गूंजती हो राम नाम की धुन भी
और उसके साथ मुक़द्दस आज़ान ख़ुशबू दे