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तुम्हारी भी जै-जै, हमारी भी जै जै / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
तुम्हारी भी जय-जय हमारी भी जय-जय
न तुम हारे न हम हारे
सफ़र साथ जितना था हो ही गया
न तुम हारे ...
याद के फूल को हम तो अपने दिल से रहेंगे लगाए
और तुम भी हँस लेना जब ये दीवाना याद आए
मिलेंगे जो फिर से मिला दें सितारे
न तुम हारे ...
वक़्त कहाँ रुकता है तो फिर तुम कैसे रुक जाते
आख़िर किसने चाँद को छुआ है हम क्यों हाथ बढ़ाते
जो उस पार हो तुम हम इस किनारे
न तुम हारे ...
था तो बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बेहतर है
ये दुनिया है एक सराय जीवन एक सफ़र है
रुका भी है कोई किसी के पुकारे
न तुम हारे ...