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तुम आये तो / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

तुम आये तो सावन आया, गये उठा तूफ़ान!
जल में तैरे रेगिस्तान!

कुछ कहना हो, कुछ कह जाऊँ,
दिन-दिन-भर घर में रह जाऊँ,
ताजमहल जैसा लगता है कलई पुता मकान!
जल में तैरे रेगिस्तान!

दर्पण देखूँ, देख न पाऊँ,
अर्थहीन गीतों को गाऊँ,
सूरज डूबे ही पड़ जाऊँ, सर से चादर तान!
जल में तैरे रेगिस्तान!

सोते में चौकूँ, डर जाऊँ,
साँस चले, लेकिन मर जाऊँ,
सिरहाने रखने को खोजूँ, आधी रात कृपान!
जल में तैरे रेगिस्तान!

मुश्किल से हो कहीं सबेरा,
चैन तनिक पाये जी मेरा,
जैसे-जैसे धूप चढ़े, होता जाऊँ नादान!
जल में तैरे रेगिस्तान!