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तुम किसी तौर मेरे हो जाते / कांतिमोहन 'सोज़'
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तुम किसी तौर मेरे हो जाते ।
दूर सारे अन्धेरे हो जाते ।।
फिर से रातों को चान्द मिल जाते
फिर से रौशन सवेरे हो जाते ।
तेरी ज़ुल्फ़ों से बदके होड़ यहाँ
लाख साए घनेरे हो जाते ।
एड नज़रे-करम नहीं वर्ना
कितने शायर चितेरे हो जाते ।
एड इशारा ही कर दिया होता
ख़्वाब अपने कमेरे हो जाते ।
दिल में शहनाई गूँजने लगती
घर में सुख के बसेरे हो जाते ।
सोज़ कुछ और तुझको जीना था
कौन जाने वो तेरे हो जाते ।।