तुम जाओ सुसरा सास / धनपत सिंह
तुम जाओ सुसरा सास,
समझा ल्यूंगी जब आज्यागा मेरे पास
मेरे बुझे ताझे बिना कित भरतार जावैगा
मेरा वो गुनाहगार क्यूकर तजकै नार जावैगा
धमका दयूंगी करड़ी हो कै क्यूकर बाहर जावैगा
हो मनैं सै पक्का विश्वास
कहैगा पलंग की मै नाटज्यां बिछावण नैं
साबुण, तेल मांगैगा मैं पाणी दयूं ना न्हावण नैं
राख दयूंगी भूखा उसनैं भोजन दयूं ना खावण नैं
देखां कै उसकी गुंज्याश
जो बीर मर्द नैं कहया करै सै कह मैं बात हजार दयूंगी
नाक के म्हं दम आज्या कर मैं ऐसी कार दयूंगी
कमरे के म्हं रोक कै नैं आग्गै ताळा मार दयूंगी
हेरी फेर कित जागा बदमाश
जो बीर मर्द तैं करया करै सैं करूं मरोड़ ल्यूंगी
प्यार, मोहब्बत, सेवा करकै भाग दौड़ थाम ल्यूंगी
कहै ‘धनपत सिंह’ निंदाणे के नैं हाथ जोड़ थाम ल्यूंगी
सदा रहूं चरण की दास