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तुम थे तो दुश्वारी अच्छी लगती थी / रंजना वर्मा

तुम थे तो दुश्वारी अच्छी लगती थी
हम को बात तुम्हारी अच्छी लगती थी

छोटी छोटी खुशियाँ ढूंढा करते थे
बच्चों की किलकारी अच्छी लगती थी

होंठ हिले तो दर्द भरे नग़मे फूटे
चुप चुप सी दुखियारी अच्छी लगती थी

प्यासे होठों का तिश्नगी नसीब रहा
पानी की हर झारी अच्छी लगती थी

ख़ंजर ले कर दोस्त गले मिलने आया
पहले सब से यारी अच्छी लगती थी

नींद भरी उन जागी जागी आँखों में
ख्वाबों भरी खुमारी अच्छी लगती थी

तनहा हम को बीच राह में छोड़ गया
उस की सूरत प्यारी अच्छी लगती थी