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तुम नाराज़ मत होना / अमित गोस्वामी

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मेरे कमरे में आई तो नहीं हो तुम कभी
लेकिन जब आओगी, तो देखोगी कि
बेतरतीब सी बिखरी हैं सब चीज़ें
करीने से अगर कुछ है तो बस
गुलदान में काग़ज़ के इक दो फूल रक्‍खे हैं
अगर आओगी तो फूलों की ख़ुशबू
तुमको पहचानी लगेगी
मेरी इक बात पर बेसाख्‍़ता तुम हँस पड़ी थी
तब ये ख़ुशबू गिर गई थी बालकॉनी में तुम्‍हारी
उठा लाया था चुपके से वहीं से
वही ख़ुशबू छिड़क रक्खी है
उन काग़ज़ के फूलों पर

किताबों की पुरानी शेल्‍फ़ के ऊपर की
जो दीवार ख़ाली है
मेरी नज़रों से देखोगी तो इस दीवार में
तुमको नज़र आएगी इक तस्‍वीर
जिसमें ख़ुद को तुम पहचान ही लोगी
तुम्‍हें मालूम हो इससे ज़रा पहले ही मैंने खींच ली थी
अपनी ऑंखों से ही ये तस्‍वीर
जब तुम अपने बालों को झटक कर
हाथ से सुलझा रही थी
बिना पूछे ही खींची थी,
बिना पूछे ही ले आया

मेरी खिड़की से दिखता तो नहीं है आसमाँ लेकिन
ख़ुद अपना आसमाँ मैंने बना रक्खा है कमरे में
सितारों की तरह इस आसमाँ पर टिमटिमाते हैं
मेरे अशआर जो मैंने तुम्हारे नाम लिक्खे हैं
कमी थी चाँद की बस
सो चुरा लाया हूँ चुपके से
तुम्हें भी याद होगा
जब तुम्हारी आँख में आँसू छलक आये थे
अश्‍कों को छुपाने की गरज़ से
तुमने चेहरे को हथेली में छुपा रक्खा था
मैंने अपने हाथों से हटाया था हथेली से जो चेहरा
तो नया इक चाँद निकला था
जिसे मैं अपनी नज्‍़मों में छुपा लाया था हौले से
यही वो चाँद है जो मैंने अपने आसमाँ पर टाँग रक्खा है
मेरे कमरे में अब कोई अमावस ही नही होती

तुम्‍हारे संदली हाथों की कुछ नरमी
तुम्‍हारे मरमरीं पैरों की कुछ आहट
तुम्‍हारे दिल की धड़कन में छुपी लय
और तुम्‍हारे मख़मली लब से छलकती
मद भरी आवाज़ के क़तरे

तुम्‍हारे घर से कुछ चीज़ें
बिना पूछे उठा लाया हूँ
तुम नाराज़ मत होना