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तुम मुझे जितना आज़माते हो / सिया सचदेव

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तुम मुझे जितना आज़माते हो
दिल से उतने ही दूर जाते हो

दुश्मनी की नज़र से मत देखो
शक में यूँ ख़ुद को क्यूँ जलाते हो

इम्तेहां मेरा ले रहे हो मगर
मुझमें आके ही डूब जाते हो

यूँ भी नाकाम से मरासिम हैं
क्यूँ तमाशा इन्हें बनाते हो

सांस दर सांस मौत का आलम
तुम तो बस यूँ ही मुस्कुराते हो

सब सिया जीत जाएँ नामुमकिन
क्यूँ शिकस्तों से खौफ़ खाते हो