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तूफां में क़ायम मकान है / ध्रुव गुप्त
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तूफां में क़ायम मकान है
क़िस्मत थोड़ी मेहरबान है
सदियों से चलते आए हैं
वह पर्वत है, या ढलान है
दिल गर्दिश में भी लगता था
घर में भी कुछ इत्मीनान है
बस उनके घर से लौटे थे
कैसी बरसों की थकान है
गरचे सफ़र जुदा है सबका
कुछ तो सबके दरमियान है
पांव में अपने छाले हैं, या
टुकड़ा-टुकड़ा आसमान है
जुदा-जुदा हैं रंग ख़ुशी के
दुख की इक जैसी ज़ुबान है
पास हुए, ना फेल हुए हम
यह भी कैसा इम्तिहान है