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तू हमरा उकसावऽ हऽ / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
जात-पात के झंझट में
काहे आज फंसावऽ हा
झूठ के आँच बनावे खातिर
कुकरा नियन लड़ावऽ हा
किसिम-किसिम के लगा मुखौटा
छुप-छुप खेलऽ खेला
उलट-पुलट बतियावऽ हानित
मचल हे ठेलम-ठेला
पहिचानऽ ही खूब तोरा हम
तू हमरा उकसावऽ हा
भाय-भाय में लड़वे खातिर
धंधा ई अपनइला हे
बेकसूर के खून खराबा
से तू प्यास बुझावऽ हा
गुंडा के सरदार बनल हा
असली रूप छिपावऽ हा
कखनउ बनऽ हा शुभ चिंतक सन
कखनउ शातिर जइसन हा
आंदोलन के मालिक तू ही
भीतरघाती कइसन हा
अनगिनती हा रूप पासा में
सगरे गाज गिरावऽ हा?