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तृतीय मुण्डक / द्वितीय खण्ड / मुण्डकोपनिषद / मृदुल कीर्ति

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शुचि परम शुभ्रं ब्रह्म धाम को जानते निष्कामी ही,
सन्निहित है ब्रह्माण्ड जिसमें, है वही अविरामी ही।
निष्कामी साधक, परम की, जो करते हैं ऋत साधना,
रज वीर्य मय जन्मं मरण की शेष उसकी यातना॥ [ १ ]

वहॉं जन्म होता है सकामी का, जहॉं वह चाहता ,
महा पूर्ण काम जो हो चुका, उसे कोई कर्म न थामता।
जब कामनाएं सकल उसकी सर्वथा ही विलीन हों ,
तब त्यक्तेन का भावः मुख्य हो, ब्रह्म मैं लवलीन हो॥ [ २ ]

मिलता प्रभो नहीं बुद्धि प्रवचन, तर्क श्रुति न विवाद से
वह तो मिले केवल उसी की, ऋत कृपा के प्रसाद से।
स्वीकार जिसको स्वयं करते, स्वयं उसको ही प्रभो,
अपना यथार्थ स्वरुप दिखलाते , प्रकट होते विभो॥ [ ३ ]

कर्तव्य त्यागी और प्रमादी, साधना बलहीन को,
शुचि सात्विक लक्षण रहित, साधक व् ध्यान विहीन को।
नहीं ब्रह्म है प्राप्तव्य, वह तो मात्र पावन भक्त को,
प्राप्तव्य अभिलाषी जो उत्कट, और ऋत आसक्त को॥ [ ४ ]

वे जिनके अंतःकरण शुद्ध हों, रागहीन हों सर्वथा
ऐसे महर्षि गण ही ब्रह्म को, प्राप्त हो जाते यथा।
ऋत ज्ञान से वे तृप्त शांत व्, ब्रह्म से संयुक्त हैं,
पूर्णतः वे प्रविष्ट ब्रह्म में, ब्रह्म हेतु नियुक्त हैं॥ [ ५ ]

वेदांत ज्ञान से ब्रह्म को जो, पूर्ण रूप से जानते,
वे कर्म फल आसक्ति त्याग के, मार्ग को पहचानते।
हैं शुद्ध अंतःकरण जिनके, मरण काले वे सभी,
ब्रह्म लोक में अमर होकर जन्म न लेते कभी॥ [ ६ ]

पन्द्रह कलाएं और सारे देवता व् इन्द्रियाँ,
सब ही अपने देवताओं में, प्रतिष्ठित हों वहाँ ।
उन्मुक्त वही जीवात्मा, सब कर्म बंधन से परे,
वही ब्रह्म अविनाशी में लीन हो, जटिल भव सागर तरे॥ [ ७ ]

स्व नाम रूप को त्याग जैसे जलधि में नदियाँ मिलें,
अथ यथा ज्ञानी नाम रूप से, रहित हो प्रभु से मिलें।
वे शुद्ध परात्पर दिव्य होकर, ब्रह्म में तल्लीन हों,
फ़िर ब्रह्म मय ब्रह्मत्व ब्रह्म के अंश में लवलीन हों॥ [ ८ ]

यह तो नितांत ही सत्य है की जो भी ब्रह्म को जानता,
है निश्चय ही वह ब्रह्म, उसका कुल भी ब्रह्म को जानता।
वह शोक, चिंता, पाप भय, संशय, विषय, अभिमान से,
संशय विपर्यय हीन, मुक्त हो जन्म मृत्यु विधान से॥ [ ९ ]

हैं ब्रह्म विद्या के वही अधिकारी, जो जिज्ञासु हैं।
जो वर्ण आश्रम, धर्म पालक, ब्रह्म तत्व पिपासु हैं।
निष्कामी वे जो दक्ष, जिनकी ब्रह्म निष्ठा लक्ष्य है,
शुभ यज्ञ करता जिनको न कुछ, ब्रह्म के समकक्ष है॥ [ १० ]

व्रत ब्रह्म चर्य के उचित पालन में, नहीं जो समर्थ हैं,
उसे ब्रह्म विद्या, तत्व ज्ञान का, ज्ञात न कुछ अर्थ है,
ऋषि अंगिरा ने सत्य शौनक से कहा, शुभ वचन है,
शुचि परम ऋषियों को नमन, पुनि नमन है, पुनि नमन है॥ [ ११ ]