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तेरी ख़ातिर ख़ुद को मिटा के देख लिया / पवन कुमार
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तेरी ख़ातिर ख़ुद को मिटा के देख लिया
दिल को यूं नादान बना के देख लिया
जब जब पलकें बन्द करूँ कुछ चुभता है
आँखों में इक ख़्वाब सजा के देख लिया
बेतरतीब सा घर ही अच्छा लगता है
बच्चों को चुपचाप बिठा के देख लिया
कोई शख़्स लतीफा क्यों बन जाता है
सबको अपना हाल सुना के देख लिया
खुद्दारी और ग़ैरत कैसे जाती है
बुत के आगे सर को झुका के देख लिया
वस्ल के इक लम्हे में अक्सर हमने भी
सदियों का एहसास जगा के देख लिया