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तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता / गुलाब खंडेलवाल

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तेरी तिरछी अदाओं पर जिन्हें मरना नहीं आता
उन्हें इस ज़िन्दगी से प्यार भी करना नहीं आता

ज़रा उँगली पकड़कर दो क़दम चलना सीखा जाओ
पले फूलों में हम, काँटों पे पग धरना नहीं आता

हमारी बेकली का मोल क्या हो उनकी आँखों में!
हमें तो आँसुओं में रंग भी भरना नहीं आता

जलाकर खाक़ कर देती है अपने मिलनेवालों को
हमारे दिल को पर इस आग से डरना नहीं आता

जिन्हें भाते नहीं है बाग़ में काँटे, गुलाब! उनको
कभी फूलों से सच्चा प्यार भी करना नहीं आता